(मनोज जोशी) प्राइवेट नौकरी करने वाले इम्प्लाॅइज के वेतन से ईएसआई के तौर पर हर महीने पैसे काटे जाते हैं ताकि उन्हें सरकार की ओर से बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करवाई जा सके। इसके लिए केंद्र सरकार की ओर से ईएसआई में कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम भी शुरू की गई है। इसके तहत मरीज को ईएसआई के पेनल्ड अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है।
वहां जाने पर उसका इलाज या ऑपरेशन पैसे लिए बिना किया जाना होता है लेकिन यह कैशलेस की व्यवस्था अस्पताल में जाते की उस समय धराशाही हो जाती है जब मरीज को दवाओं की बड़ी लिस्ट थमा की दी जाती है और कहा जाता है कि बाहर से दवाई खरीद कर लाएं।
हजाराें रुपए की दवाई जो ईएसआई की ओर से देनी होती है, वह बीमार इम्प्लॉयी खरीद कर लाते हैं और फिर बाद में यह पैसे वापस करवाते हैं। बिल जमा करवाने के बाद दो साल तक का समय लग जाता है। मोहाली इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के लेबर लॉ कमेटी के चैयरमैन एडवोकेट जसवीर सिंह ने कहा कि जब इलाज कैशलेस है तो इम्प्लाॅयी को अस्पताल में जाकर एक भी पैसा क्यों खर्च करना पड़े। मोहाली में इसके लिए ईएसआई को व्यवस्था दुरुस्त करनी चाहिए। मरीज इस व्यवस्था के कारण इलाज करवाने में देर कर जाते हैं या कइयों को जान से भी हाथ धोना पड़ता है।
इम्प्लाॅयी को चक्कर न लगाने पड़ेे इसलिए कैशलेस...
एडवोकेट जसवीर सिंह ने बताया कि जो भी मरीज ईएसआई के तहत आता है सरकार ने उसके कैशलेस इलाज की व्यवस्था इसलिए की है ताकि उसे उपचार के दौरान एक भी पैसा खर्च न करना पड़े। डॉक्टरों की लापरवाही के कारण मरीजों को जेब से कैश खर्च कर इलाज करवाना पडता है। क्योंकि ईएसआई में दवाइयां नहीं होती और लाई गई दवाओं के बिल कैशलेस स्कीम होने के बावजूद देरी से पास किए जाते हैं।
1. ढाई लाख का है इंजेक्शन, 2 महीने से नहीं मिला वेतन... इंडस्ट्रियल एरिया फेज-7 में काम करने वाले 51 साल के गांव चौलटा निवासी ओमप्रकाश के पैर पर कैंसर का जख्म हो गया है। उसके इलाज के लिए उन्होनें प्राइवेट अस्पताल में रेफर किया गया था। जहां पर जाते ही उनसे कीमोथैरेपी शुरू करने के लिए करीब ढा़ई लाख रुपए का इंजेक्श्न पर्ची लिखकर मंगवाया गया।
20 साल से ईएसआई कटवाने वाले ओमप्रकाश ने कहा कि इलाज कैशलैस है तो जवाब मिला कि ईएसआई से इंजेक्शन लेकर आओ। 14 अगस्त से अब तक उन्हें इंजेक्शन नहीं मिला है। उसका जख्म बढ़ता जा रहा है। अब पांव को बचाना भी मुश्किल हो गया है।
2. 13 हजार की दवाइयां खरीदकर करवाया इलाज... इंडस्ट्रियल एरिया फेज-7 में काम करने वाले बलौंगी के 55 साल के चुलई ने बताया कि उनकोे स्पाइन कैंसर बताया गया है। इसके लिए वे फेज-3बी2 स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में कैशलेस स्कीम के तहत इलाज करवाने गए थे।
लेकिन उनको वहां जाते ही दवाओं की स्लीप थमा दी गई और एक ऐसी स्लीप भी दी गई जिसमें दवाई किस दुकान से लानी है उसका नाम तक लिखा हुआ था। चंडीगढ़ के धनास में स्थित स्टोर से वह 13 हजार की दवाएं लेकर आए ताे उनका इलाज शुरू हुआ। उन्होने बताया कि वे पिछले 22 सालों से सैलरी से ईएसआई कटवा रहे हैं।
3. बाजार से खरीदकर लाए दवा तो हुआ ऑपरेशन... पेट में रसौली होने के कारण बलौंगी निवासी 34 साल का रामबाबू को भी ईएसआई की कैशलेस स्कीम का फायदा कैश देने के बाद ही मिल पाया है। डॉक्टर्स ने उनको बताया कि उनके पेट में टीवी का एब्सिस है। इसका ऑप्रेशन किया जाएगा। इसके लिए उसे भी दवाओं के नाम पर 12 हजार रुपए खर्च करने पड़े तो उनका ट्रीटमेंट शुरू हुआ। रामबाबू ने कहा कि वे पिछले 8 सालों से प्रतिमाह ईएसआई कटवा रहे हैं।
4. 45 हजार जेब से खर्चे तो मिला ईएसआई का फायदा... 44 साल के राणा विक्रम भी अपनी जेब से खर्च कर इलाज करवाने वालाें में शामिल हैं। इंडस्ट्रियल एरिया फेज-7 की एक कंपनी में काम करने वाले राणा विक्रम ने बताया कि उन्हें बहुत दुख हुआ जब वे अपने पेट में टयूमर का ऑपरेशन करवाने के लिए ईएसआई के पेनल्ड प्राइवेट अस्पताल में गए। वहां पर उनका इलाज तो हुआ लेकिन ऑपरेशन के लिए 45 हजार रुपए उन्होंने जेब से दिए।
हर मरीज को कैशलैस स्कीम के तहत रेफर किया जाता है। दवाओं के लिए ईएसआईसी को लिखा जाता है। दवाई आने पर ही मरीज को दी जाती है। यदि नहीं होती तो बाहर से खरीद कर मरीज बिल पास करवाता है। डॉ. दर्शन सिंह, , सीनियर मेडिकल अफसर, ईएसआई अस्पताल इंडस्ट्रियल एरिया फेज-7
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